साक़िया और पिला, और पिला
सितम कम गुज़रे अभी और जिला
कोई शिक्वा, न शिकायत, न गिला
ऐसे देते हैं मुहब्बत का सिला !
इरादतन कुरेदता हो जो ज़ख़्म,
ऐसा दुनिया में पराया न मिला
हमने उसको बना लिया माली
जिसकी मर्ज़ी बिना पत्ता न हिला
वही रिमझिम है - वही इन्द्रधनुष
या ख़ुदा याद फिर उनकी न दिला
8 comments:
waah bahut khoob lajawaab...
KYA KAHNA............
ZINDABAD
बहुत बढिया!!
बहुत बढ़िया ...अच्छी ग़ज़ल
सुंदर
और
जिला दे इस कदर
कि मरने की राह न मिले ।
हमने उसको बना लिया माली
जिसकी मर्ज़ी बिना पत्ता न हिला
...सुंदर गज़ल बधाई
'सितम कम गुज़रे अभी और जिला'
मरने की दुआ मांगते तो बहुत देखे हैं ये पहला प्रेमी है जो जिलाने की मांग कर रहा है. !!!
वाह बहुत खूब.
महफ़िल जमाने वाली गज़ल है. ;-)
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