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Thursday, 13 May 2010

जाँ-ब-लब, तुझ नज़र : एक छोटी बह्र की तुक और ग़ज़ल

छोटी बह्र मेरी ज़ाती पसंद है। मुश्किल जो होती है, ऐसा सुना है। पहले भी मैंने छोटी बह्र में कई बार कही हैं ग़ज़लें, मगर अपने आप से एक वादा था कि पहले का कहा हुआ यहाँ नहीं लाऊँगा, और फिर इतनी छोटी बह्र में इसके पहले कहा भी सिर्फ़ एक बार है। अब ये रचना जनाब वीनस 'केशरी' से किया हुआ वादा भी है, और एक तजुर्बा भी, इसी में तुकबन्दी भी है और ग़ज़ल भी-
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हम इधर
दम उधर


बेवजह
ग़म-न-कर


यूँ न फिर
दर-ब-दर


हौसला
रख मगर


अर्श ला
फ़र्श पर


बस ज़रा
रख सबर


चुन नई
रहगुज़र


अब सुकूँ
अब सफ़र


रोज़ जी
रोज़ मर


जाँ-ब-लब
तुझ नज़र


फ़ितनागर
बे-ज़रर


बेख़बर
अब-न-डर


देख ले
भर नज़र


दर्द को
प्यार कर


क्या अगर
क्या मगर


रञ्जिशें
तर्क कर


ला दुआ-
में असर


है न "वो"
जल्वागर


बन्दे-ग़म
बख़्तवर


दश्ते-दिल
बे-शजर


तिश्नालब
हर लहर


चश्मो-रुख़
तर-ब-तर


तेग़ो-तंज़
बे-असर


इर्स-ए-इश्क़
जाम:दर


अश्क़ो-वक़्त
बख़्यागर

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अर्श = आकाश, आस्माँ, ऊपरवाला
जाँ-ब-लब = जब जान होठों तक चली आए, जान निकलने ही वाली हो
तुझ नज़र = (प्राचीन उर्दू प्रयोग) तेरी निगाह पड़ने से, (या) तुझको समर्पित
फ़ितनागर = साज़िशी, लोगों को भड़का कर उपद्रव / दंगा कराने वाला, षड्यंत्रकारी
(यहाँ 'त' आधा होना चाहिए मगर टाइप करने में जुड़ कर फ़ित्नागर हो जाता है)

बे-ज़रर = जिससे कोई हानि न पहुँचे, बेहद सीधा-सादा
रञ्जिश = वैमनस्य, नाराज़गी, ख़फ़गी, दुश्मनी
तर्क = परित्याग, छोड़ना
जल्व:गर = प्रकट, रूनुमा
बन्दे-ग़म = प्रेम का फ़ंदा, दु:ख का फ़ंदा (यहाँ अर्थ है - प्रेम के फंदे में [फँसा हुआ है जो]
बख़्तवर = सौभाग्यशाली, ख़ुशनसीब, बख़्तयार
दश्ते-दिल = हृदय का वन (जंगल)
शजर = पेड़, वृक्ष
तिश्नालब = प्यासे होंठ वाला/वाली
चश्मो-रुख़ = आँखें और गाल
तेग़ो-तंज़ = तलवार और ताने
अश्क़ो-वक़्त = आँसू और समय
इर्स-ए-इश्क़ ; इर्स = परम्परा, पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाली परम्परा, इर्से-इश्क़ = प्रेम की परम्परा
जाम:दर = कपड़े फाड़ने वाला; शोकातिरेक से या पागलपन, जुनून से
बख़्य:गर = तुरपाई करने वाला, सिलनेवाला, यहाँ (दिल के) घाव/ज़ख़्म भरने के अर्थ में प्रयुक्त

5 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

इतनी पतली पगडण्डी पर चलाईयेगा तो गिर पड़ेंगे ।
शिव शिव,
हर हर ।

Amrendra Nath Tripathi said...

'रञ्जिश' = आपके द्वारा इस शब्द में लिखा गया पंचमाक्षर उर्दू में भी है ?
ज्यादा नहीं जानता बहर वगैरह के बारे में , पर आपके द्वारा दिए गए अर्थों को
पढ़कर भावराशिको महसूसता रहा बड़ी देर तक , लगा जैसे सागर के किनारे
रखी गयी छोटी - छोटी सीपियाँ हैं , लहरें आकर जिन्हें बार-बार फेनिल - जल
पिला रही हैं ! सुन्दर ! आभार !

Himanshu Mohan said...

@अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
अमरेन्द्र जी,
यह "ञ" अक्षर उर्दू की लिपि में नहीं है। यह क्या, देवनागरी वर्णमाला का कोई भी अक्षर उस लिपि में नहीं है।
हिन्दी और उर्दू में फ़र्क़ करना बहुत मुश्किल है, सिवाय लिपि के और इस लिपि में देवनागरी से कहीं ज़्यादा अक्षर हैं, सिर्फ़ 'ज' के लिए चार से अधिक, मैं समझता हूँ पाँच अक्षर हैं। अनुस्वार के बहरहाल, नियम अलग हैं और पञ्चमाक्षर वाला नियम नहीं लागू होता। ऐसे ही यहाँ भी केवल बिन्दु और चन्द्रबिन्दु से काम चलाया जा सकता था, मगर मैंने आदतन इस "ञ" का प्रयोग किया, क्योंकि लिपि तो देवनागरी ही थी न यहाँ!
और बह्र के बारे में बहुत जानने की ज़रूरत भी नहीं; जब तक गेयता बनी रहे या मात्राओं और लय में विकट भेद न आ जाय। और एक रहस्य की बात - मूल में संस्कृत के ही होने से छन्दशास्त्र यदि अच्छी तरह समझा हो, तो आप आसानी से समझ लेंगे ग़ज़ल की बह्र, उसके लिए फ़ाइलुन-मुतफ़ाइलुन वगैरह याद करने की ज़रूरत नहीं।
वैसे इर्से-इश्क़ वाला और अश्क़ो-वक़्त वाला शे'र इस ग़ज़ल का निचोड़ हैं।
शुक्रिया!

@प्रवीण पाण्डेय
भाई! पहला मुरीद देखा है ग़ज़ल का जो "शिव-शिव, हर-हर" कह कर दाद दे रहा है। ग़ज़ल न हुई गंगास्नान हो गया!
चलिए अब से पगडण्डी को राजमार्ग बना लिया जाएगा।

Amrendra Nath Tripathi said...

महराज , आपको ऐसे ही कोंचता(खोदता) रहूंगा ! जानने के खातिर !
मजाक - मजाक में कहता हूँ --- '' खोदनं परमं धर्मः '' ! :)
आपकी रहस्य वाली बात से सहमत हूँ , मुझे गजल के अहर-बहर
का कुछ नहीं पता था पर कुछ महीने पहले लिख गया था कुछ
यूँ ही , ( दिमाग में ले जैसा कुछ जरूर था ) लोगों ने कहा - ' अच्छी
गजल है ' , चाहें तो आप भी कृपादृष्टि डाल सकते हैं यहाँ पर ---
http://amrendrablog.blogspot.com/2010/01/blog-post_29.html

Amrendra Nath Tripathi said...

'ले' को लय पढ़ा जाय | क्षमाप्रार्थी हूँ !