शे'र कहते बना है बरसों बाद
दर्द से सामना है बरसों बाद
आमना-सामना है बरसों बाद
मामला फिर ठना है बरसों बाद
आज फिर ख़ंजरों का जलसा है
एक सीना तना है बरसों बाद
भेड़िए सहमे हैं, कोई वारिस
शेरनी ने जना है बरसों बाद
दोनों मिलना तो चाहते हैं मगर
बीच में फिर अना है बरसों बाद
ज़ुल्म सहने से कब गुरेज़ हमें
हँसते रहना मना है बरसों बाद
सुना उस संगदिल का दामन भी
आँसुओं से सना है बरसों बाद
ख़ुद को ख़ुद से मिलाने की ख़ातिर
फिर कोई पुल बना है बरसों बाद
दिल की पगडण्डी पे निकले हैं ख़याल
याद का वन घना है बरसों बाद
9 comments:
आपकी गजल और ऊपर की टीप के बाद कहने को कुछ बच ही नहीं रहा है जैसे !
चाउर चाउर भिंडा के लिखा हो जैसे !
wah bahut khoob aur baad me ye kavita jabardast...
औरों के झगड़े निपटाकर घर आया तो,
अपनों से ही युद्ध ठना है बरसों बाद ।
ख़ुद को ख़ुद से मिलाने की ख़ातिर
फिर कोई पुल बना है बरसों बाद
जवाब नहीं। लाजवाब!!
इस ग़ज़ल में विचार, अभिव्यक्ति शैली-शिल्प और संप्रेषण के अनेक नूतन क्षितिज उद्घाटित हो रहे हैं।
भेड़िए सहमे हैं, कोई वारिस
शेरनी ने जना है बरसों बाद !!
बेहद प्रशंसनीय
"एक सीना तना है बरसों बाद "
"कोई वारिस जना है बरसों बाद "
मैं कापी पेस्ट वाले कमेन्ट का प्रयोग नहीं करता. लेकिन आज तुम्हारी इस गजल ने सारे बंधन तोड़ दिए.
तुमने कितना अच्छा लिखा है, यह बताने के लिए शब्द नहीं मेरे पास. बस इतना समझ लो कि ईर्ष्या की आग में जला जा रहा हूं.
**मतले में गजल की जगह 'शेर'कर लो भाई.
**दूसरे मतले को गजल के बीच से उठा कर पहले मतले के नीचे लगा लो.
और हाँ... पूरे कमेन्ट के दौरान तुम-तुम करता रहा हूँ, बुरा न मानना.
zabardast zabardast zabardast.....:)
ख़ुद को ख़ुद से मिलाने की ख़ातिर
फिर कोई पुल बना है बरसों बाद
गहरे भाव लिए बढ़िया ग़ज़ल..
@Sanjiv Kavi
आपकी संवेदना महसूस सकता हूँ, अब जब कि जवाब में इतनी देर हो गयी जिस बीच आज ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस में मारे गए निर्दोष यात्री भी माओवादियों के हमले का शिकार हुए - और मैं यही मानता - कहता हूँ - कि हिंसा नहीं।
@अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
@दिलीप
@मनोज कुमार
बहुत शुक्रिया और आभार, रचनाकार कृतार्थ हुआ :)
@प्रवीण पाण्डेय
त्रासदी ही यही है जीवन की - कि युद्ध हमेशा अपनों से ही होता है आजकल!
@उम्मेद गोठवाल
आपको उत्तर देने में विलम्ब हुआ, पर आपके ब्लॉग पर मैं टहल आया था अविलम्ब। बढ़िया लगा आपका लेखन और कविता-प्रतिभा, और यहाँ पधारने हेतु आभार और धन्यवाद हौसला अफ़्ज़ाई का।
@स्वप्निल कुमार 'आतिश'
@E-Guru Rajeev
"आपके रसास्वादन में ही हमारी संतुष्टि है" - ये कथन कुछ-कुछ हलवाई की दुकान जैसा नहीं लगता? मगर क्या करें, सच यही है, और इसीलिए कहना पड़ता है - आभार!
@सर्वत एम०
उत्तर देने में देरी के लिए क्षमायाचना सहित, मुझे लगता है कि अपने लेखन को थोड़ा सुधारना पड़ेगा मुझे। वर्ना क्या मेरी रचनाओं से मैं आपको ऐसा लगता हूँ कि "तुम" से बुरा मान जाऊँ? यानी जो बात प्यार झलका रही है, अपनापन बरसा रही है, उस से रूठ जाऊँ!
और आप साहब जो कह रहे हैं, वो झलक नहीं रहा, जो झलक रहा है, वो कह नहीं रहे। आप कहते हैं 'ईर्ष्या' - बरसता है 'प्यार' और 'लगाव'; आप कहते हैं 'आग' - दिखता है 'नूर' और आँच में गर्माहट मिलती है 'अपनेपन' की।
ब-हर-हाल मैंने आपके आदेश का पालन पहले ही कर लिया था, मोबाइल से ही। कम्प्यूटर पर आज आया हूँ सो अब आपसे दरख़्वास्त है कि आते रहें और ऐसे ही झूठ-मूठ हौसला बढ़ाते रहें। शायद कभी मैं जोश में अच्छा भी लिख जाऊँ!
@rashmi ravija
धन्यवाद, यहाँ पधारने और हौसला अफ़्ज़ाई का। आपके हाथ के प्याले को बहुत दिन से देख रहा हूँ, हर बार सोचता हूँ कि इस में कॉफ़ी है या चाय - या कोई और ठण्डा-गर्म पेय? :)
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