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Sunday, 16 May 2010

एक रुबाई

चार दिन की ज़िन्दगी में उम्र भर के वायदे

पीढ़ियों की दुश्मनी के ख़ानदानी क़ायदे

दिल की दौलत बाँट कर तू जीत ले सारा जहाँ

वर्ना गिनता रह टके औ कौड़ियों के फ़ायदे

8 comments:

अमिताभ मीत said...

बहुत बढ़िया !!

दिलीप said...

sahi baat kahi janaab waah

Ra said...

चंद पंक्तियों में बहुत गहरी बात कहा दी आपने ....इसे ही हुनर कहते है ....बहुत खूब ...लाजवाब

प्रवीण पाण्डेय said...

गजबै ढा दिया । काव्यात्मक जबाब नहीं बुझा रहा है ।

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

सहिये है जी !!
टके औ कौड़ियों के फ़ायदे !!
बहुत खूब :)

Himanshu Mohan said...

@अमिताभ मीत
@दिलीप
@E-Guru Rajeev
शुक्रिया आपका, पधारने और हौसला बढ़ाने के लिए।
व्यस्तता के चलते उत्तर में देर हुई, क्षमा कृपया।

@राजेन्द्र मीणा
भाई आपकी नई फ़ोटो बढ़िया है, उम्मीद और हौसला झलक रहा है। ज़िन्दादिली से जिएँ आप, हमारी शुभकामना लीजिए।

@प्रवीण पाण्डेय
चलिए, जवाब न सही, लाजवाब ही कह दीजिए। फ़िलहाल तो हमें लाजवाब कर रखा है आपने।

जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar said...
This comment has been removed by the author.
जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar said...

हिमान्शु भाई,
आपकी यह काव्यात्मक अभिव्यक्ति संदेशप्रद है...लेकिन इसे ‘रुबाई’ नहीं कहा जा सकता! वस्तुतः यह एक मुक्तक/क़्त्‍अ है।

विदित हो कि चार पंक्तियों की हर छंदोबद्ध रचना ‘रुबाई’ नहीं होती...रुबाई का मीटर (बह्‍र)अलग प्रकार का होता है। ख़ैर...!

आपके इन चार मिसरों (पंक्तियों) का कथ्य काफी प्रेरक है...अतः बधाई!