सुकूँ से बैठ के सुनना - सुनाना होना था
तुम्हें भी आज ही क्योंकर रवाना होना था
चन्द अशआर जो तन्हा रहे जवानी भर-
इक न इक रोज़ तो इनको दिवाना होना था
आके इस उम्र में बदनाम हुए जब तुमको
गँवा के होशो-ख़िरद भी सयाना होना था
ख़ैर मशहूर तो दिल का फ़साना होना था
मगर कुछ दिन तो अभी आना-जाना होना था
जहाँ बरसाने की राधा को टेरे है बंसी-
गली मोहन की - हमारा ठिकाना होना था
7 comments:
तुम्हारी रंगतों में दमकते अल्फ़ाज़ वो,
जिन्हें कुछ साल पहले ही पुराना होना था ।
जहाँ बरसाने की राधा को टेरे है बंसी-
गली मोहन की - हमारा ठिकाना होना था
------- हम तो यहीं पर लट्टू हैं ,,,
ज्ञान जी के यहाँ आपका लिखा - कविताई में - पढ़ा तभी
से लगने लगा था कि एक अच्छे ब्लागर का
आगाजे-सुखन हो गया है !
वाकही मजा आ रहा है !
एक अनुरोध ,,, कठिन उर्दू शब्दों के अर्थ अगर आप
लिख देंगे तो आस्वाद में सहायता करेंगे ! उम्मीद है
कि अगली बार आप अनुरोध पर ध्यान देंगे , हम जैसों
के लिए इतना करें , हुजूर !
सुकूँ से बैठ के सुनना - सुनाना होना था
तुम्हें भी आज ही क्योंकर रवाना होना था
चन्द अशआर जो तन्हा रहे जवानी भर-
इक न इक रोज़ तो इनको दिवाना होना था
हिमांशुजी,
आप जिस क्षण निराश होकर गए तभी ब्लाग खोला. आपकी बेचैनी देखकर तत्काल एक पोस्ट डाल दी है
मैं चाहता था कि इसे कुछ और मित्र समय निकालकर पढ़ते
पर संतोष है...आएं और हौसला बढ़ाएं
चन्द अशआर जो तन्हा रहे जवानी भर-
इक न इक रोज़ तो इनको दिवाना होना था
waah kamaal kahte hain aap
aap ko padhkar bahut achcha laga
ab yaha hamara aana jaana hota rahega
हम तो अवध में रहते हैं, मोहन की नगरी भी तो इसी देश में ही है.
आके इस उम्र में बदनाम हुए जब तुमको |
गँवा के होशो-ख़िरद भी सयाना होना था ||
हम पर भी कमेन्ट पास होने लगे हैं.
हा हा हा
चन्द अशआर जो तन्हा रहे जवानी भर-इक न इक रोज़ तो इनको दिवाना होना था
... बेहद खूबसूरत गज़ल ... यूँ तो सारे शेर अपने आप में नायाब हैं पर ये शेर हासिले गज़ल लगा ... बहुत शुक्रिया
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