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Monday, 21 June 2010

लोगों को नींद देर रात तक नहीं आती

शे'र ख़ुद मिट गया ग़ज़ल होकर
प्रश्न शर्मिंदा रहा - हल होकर

बात ये है कि कभी कहा था -
"जबसे मेरा अफ़साना शहर में हुआ है आम
लोगों को नींद देर रात तक नहीं आती
"

कल ख़्याल आया कि क्यों न इसे ग़ज़ल की शक्ल दी जाए! सो कुछ बना तो - मगर वो शे'र न रहा। अब पसोपेश के तसव्वुर में हूँ - इसे किस शक्ल में जीने दिया जाए - शे'र को जो 'मदरप्लाण्ट' है, या नए अश'आर को जो नवांकुर हैं?
फ़िलहाल तो सोच में ही हूँ।
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होठों पे दिल-ज़ेहन की बात तक नहीं आती
उनकी कोई भी चाल-मात तक नहीं आती

अपनी कोई साज़िश भी घात तक नहीं आती
जाँ-बख़्शी* भी उनकी हयात* तक नहीं आती

हैं काम भलाई के या ऐयारी का आलम
दाएँ की ख़बर बाएँ हाथ तक नहीं आती#

जबसे मेरा अफ़साना शहर में हुआ है आम
ख़ुश-नाचते-गाते बरात तक नहीं आती

सूरज भी लगे जैसे न सोया हो रात भर
ख़ुद रात भी - अब देर रात तक नहीं आती

जिनके बिना इक दिन कभी जीना मुहाल था
ता'ज्जुब है कि अब उनकी याद तक नहीं आती

तन्हाइयाँ हैं, बस! न ख़ुशी है - न कोई ग़म
बेकैफ़* उम्र क्यूँ वफ़ात* तक नहीं आती
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जाँ-बख़्शी = जीवन-दान
हयात = जीवन, ज़िन्दगी
बे-कैफ़ = आनन्द-रहित, बेमज़ा, जब सारे नशे उतर चुके हों
वफ़ात = मृत्यु, मोक्ष, मुक्ति
#ईसा का संदेश :  "भलाई का काम इस तरह करो कि दाएँ हाथ को बाएँ हाथ की ख़बर न हो""

7 comments:

Udan Tashtari said...

क्या बात है सर...गज़ब!! वाह! क्या शेर निकाले हैं.

Himanshu Mohan said...

@ Udan Tashtari
सर जी! आप अगर यूँ ही हौसला बढ़ाते रहे - तो देखिए एक रोज़ कहीं वाक़ई अच्छा ही न कहने लग जाऊँ !
आभार।

Padm Singh said...

सूरज भी लगे जैसे न सोया हो रात भर
ख़ुद रात भी - अब देर रात तक नहीं आती

बहुत खूब !! एक एक शेर मोती ... आप बेशक सचमुच का अच्छा ही लिखते हैं ...

(कृपया नेम एंड यू आर एल से टिपण्णी का आप्शन खोल दें, हम जैसे वर्डप्रेस वालों के लिए)

E-Guru _Rajeev_Nandan_Dwivedi said...

ख़ुद रात भी - अब देर रात तक नहीं आती !!
वाह क्या बात है, अद्वितीय, अद्भुत, अनुपमेय.

Amrendra Nath Tripathi said...

बहुज्ञता का परिचय आपके शेरों ( बहुवचन में ऐसा कहना गलत
तो नहीं ? ) में बखूबी मिलता है ! सुन्दर !

प्रवीण पाण्डेय said...

"नींद नहीं आती" में कवि हृदय की वह टीस छुपी है जिसे सदियों से अनुभव तो किया गया है पर व्यक्त नहीं किया गया है । आपका प्रस्तुतीकरण एक नया पंथ प्रारम्भ करने की संभावना रखता है । प्रथम अनुयायी मैं और यह मेरा प्रथम अर्पण ।

जब से दिखी है आपकी आँखों में शोखियाँ,
हर चीज़ है सुहाती, बस नींद नहीं आती,

नीरज गोस्वामी said...

आप एक खूबसूरत ब्लॉग के ही नहीं ख्याल के भी मालिक हैं...सोच की पुख्तगी आपके अशारों से छन छन कर बाहर आ रही है...हैरत है के आप से अब तक राबता क्यूँ कर ना हो पाया...खैर देर आयद, दुरुस्त आयद...अब आते रहेंगे...मिलते रहेंगे...फिलहाल इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल कीजिये और हाँ आपका ऊपर दिया शेर अपने आपमें पूरी ग़ज़ल है...:))
नीरज