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Wednesday, 9 June 2010

कितना वो पानी में है

ख़ुल्द में कब वो मज़ा जो दुनिया-ए-फ़ानी में है
होश क्या जाने कि क्या-क्या है जो नादानी में है


हौसलों का, हिम्मतों का इम्तेहाँ है ज़िन्दगी
जो मज़ा मुश्क़िल में है, वो ख़ाक़ आसानी में है


जो सदा मँझधार से, लौटा भँवर को जीतकर;
साहिलों पर बहस अब तक, कितना वो पानी में है


जीना बिन-ख़्वाहिश के - या लेकर अधूरी हसरतें
इत्तिक़ा दर-अस्ल ख़ुद ख़्वाहिश की तुग़यानी में है


ख़ुदपरस्ती में जिया, ख़ुद के लिए मरता रहा
ख़्वाहिशे-जन्नत में वो भी सफ़हे-क़ुर्बानी में है
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ख़ुल्द = स्वर्ग, जन्नत
फ़ानी = नश्वर, नाशवान
साहिल = किनारा, तट
इत्तिक़ा = संयम, इन्द्रिय निग्रह
तुग़यानी = बाढ़, उफ़ान
ख़्वाहिशे-जन्नत = स्वर्ग की इच्छा
सफ़हे-क़ुर्बानी = क़ुर्बानी / बलिदान देने के लिए लगी हुई क़तार

10 comments:

स्वप्न मञ्जूषा said...

waah..!!
bahut badhiya...
us zajbe ka kya zikr karein
jo aap ki kalam ki rawaani mein hai...

zabardast hai...

M VERMA said...

हौसलों का, हिम्मतों का इम्तेहाँ है ज़िन्दगी
जो मज़ा मुश्क़िल में है, वो ख़ाक़ आसानी में है
बहुत सुन्दर गज़ल
जिन्दगी के करीब

संजय भास्‍कर said...

Adi didi ne sahi kaha
zabardast hai...

दिलीप said...

waah bahut khoob

Shekhar Kumawat said...

बहुत खूब, लाजबाब !

प्रवीण पाण्डेय said...

मन की मानी, एक कहानी, अब पुरानी हो चली
मौज उनकी नज़र में जो, ख़ाक़ मनमानी में है ।

Himanshu Mohan said...

@आचार्य जी
आप का बहुत-बहुत धन्यवाद, पधारने और प्रशंसा हेतु
@Suman
आप का बहुत-बहुत धन्यवाद, पधारने और प्रशंसा हेतु
@M VERMA
आप का बहुत-बहुत आभार
@संजय भास्कर
आप का बहुत-बहुत धन्यवाद, पधारने और प्रशंसा हेतु
@दिलीप
आप का बहुत-बहुत धन्यवाद, पधारने और प्रशंसा हेतु
@Shekhar Kumawat
आप का बहुत-बहुत धन्यवाद, पधारने और प्रशंसा हेतु

@प्रवीण पाण्डेय
भाई ये पहला शे'र है जो ख़ूब कहा है आपने, टिप्पणी के रूप में। बधाई!

@'अदा'
आपका बहुत धन्यवाद और आभार हौसला-अफ़्ज़ाई का और पधारने का धन्यवाद

दिगम्बर नासवा said...

हौसलों का, हिम्मतों का इम्तेहाँ है ज़िन्दगी
जो मज़ा मुश्क़िल में है, वो ख़ाक़ आसानी में है ..

आपकी लाजवाब शायरी पढ़ कर एक शेर याद आ गया ...
बेतजुसुस आ गयी मंज़िल मंज़िल अगर ज़ेरे कदम
दिल में मेरे जूस्तजू का हौंसला रह जाएगा ....

Himanshu Mohan said...

@ दिगम्बर नासवा
वाह-वाह!
बहुत ख़ूब शे'र है। और इतना बढ़िया शे'र याद दिला सकी ये रचना -
अगर ये याद आया तो फिर वाकई मुझे अपनी शायरी अच्छी लगने लगेगी, और मेरी ख़ुशफ़हमी का सारा दारोमदार या कहें कि इल्ज़ाम आपके सर होगा नासवा साहेब!

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

ये आप अच्छा करते हैं कि कठिन शब्दों के अर्थ भी दे देते हैं.
सब स्पष्ट हो जाता है.
धन्यवाद.