शायरी - ग़ज़लें, नज़्में क्या-क्या कुछ
लगा माँ की मुझे दुआ सा कुछ
जाने जुगनू कि हौसले के चराग़
यादों-यादों जला बुझा सा कुछ
फिर से कुछ सोच लिया शाम ढले
हुआ फिर दिल से लापता सा कुछ
बेरूख़ी भी है, और ख़फ़ा भी नहीं-
ज़ुल्म है, पर लगे अदा सा कुछ
बूढ़े पत्तों की बेबसी कि उन्हें
कहे पतझड़ भी बेवफ़ा सा कुछ
अब के सावन में घटा के अंदाज़
साथ रहते हुए जुदा सा कुछ
कुछ कहा हमने - लोग कुछ समझे
और हर शख़्स फिर ख़फ़ा सा कुछ
जुड़ते जाते हैं लाखों मंसूबे
दिल ही दिल में है टूटता सा कुछ
मुझसे पूछी है मेरी राय तो अब
देख ले तू भी आइना सा कुछ
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अलहदा -
और अश'आर मैं कह सकता था
पर है अब मुझमें अनमना सा कुछ
इश्क़ का फाड़ के ख़त गुस्से में
हुस्न अब फिर है मेहरबाँ सा कुछ
तेरी रहमत पे शक़ नहीं, लेकिन
अपनी बर्बादी - क़ायदा सा कुछ
हमको सारे तेरे इल्ज़ाम क़ुबूल
और फिर भी तुझे गिला सा कुछ!
"एक बीमार भी बाक़ी न बचे"
बँटा फिर ज़हर या दवा सा कुछ
हम ये समझे - कि कुछ नहीं समझे
ज़माना समझा जाने क्या-क्या कुछ
13 comments:
सुन्दर
आँख खोली और पहले नाम मेरा ही कहा,
बेवजह ही उनके बारे, सोचता सा कुछ ।
महत्वपूर्ण पोस्ट, साधुवाद
वाह बहुत सुन्दर लिखा है।
वाह बहुत सुन्दर लिखा है।
Bahut sundar aur bhavanatmak abhivyakti.
Hemant
बूढ़े पत्तों की बेबसी कि उन्हें
कहे पतझड़ भी बेवफ़ा सा कुछ
अब के सावन में घटा के अंदाज़
साथ रहते हुए जुदा सा कुछ
कुछ कहा हमने - लोग कुछ समझे
और हर शख़्स फिर ख़फ़ा सा कुछ
जुड़ते जाते हैं लाखों मंसूबे
दिल ही दिल में है टूटता सा कुछ
मुझसे पूछी है मेरी राय तो अब
देख ले तू भी आइना सा कुछ
और अश'आर मैं कह सकता था
पर है अब मुझमें अनमना सा कुछ
"एक बीमार भी बाक़ी न बचे"
बँटा फिर ज़हर या दवा सा कुछ
हम ये समझे - कि कुछ नहीं समझे
ज़माना समझा जाने क्या-क्या कुछ
bahut hi khoobsooratii se aap ne bahut sare jazwaton ko shayri mein pirodiya hai ....
meri taraf se mubarakbaadi qobool kijiye.
वाह हिमांशुजी ,
अच्छा कलाम है !
दो - तीन शे'र तो मुझे बहुत पसंद आए …
मुझसे पूछी है मेरी राय तो अब
देख ले तू भी आइना सा कुछ
सुभानअल्लाह !
बेरूख़ी भी है, और ख़फ़ा भी नहीं
ज़ुल्म है, पर लगे अदा सा कुछ
क्या ख़ूब !
आना पड़ेगा आपके यहां फिर से… … …
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
बेरूख़ी भी है, और ख़फ़ा भी नहीं-
ज़ुल्म है, पर लगे अदा सा कुछ !!
ये बयानी अनुपमेय है हिमांशु जी.
हम तो तारीफ भी नहीं कर सकते. :P
कुछ कहा हमने - लोग कुछ समझे
और हर शख़्स फिर ख़फ़ा सा कुछ
मुझसे पूछी है मेरी राय तो अब
देख ले तू भी आइना सा कुछ
जनाब साहिर का एक शेर है...
दुनिया ने तजुर्वातोहवादिस की शक्ल में
जो कुछ मुझे दिया वही लौटा रहा हूं मैं..
आपकी गजल भी वहीं कहीं से गुजर रही है..
अच्छी गजल
@kumar zahid
ज़ाहिद साहब नमस्ते!
इतनी ऊँचाइयों की बात मत कीजिए कि चक्कर आने लग जाय, ऊँचाइयों से ख़ौफ़ हमारी ज़ाती कमज़ोरी है। आप बस अपना प्यार बनाए रखें और आशीष भी, यही गुज़ारिश लिए हूँ। इस हौसला अफ़्ज़ाई से शायद आगे कभी अच्छा ही हो जाय - क़लाम!
मुझसे पूछी है मेरी राय तो अब
देख ले तू भी आइना सा कुछ
और आइना यही कहता है कि आपका हर शे'र बहुत कुछ और बहुत खूबसूरत अंदाज़ में कह गया ...
बहुत खूब !!
वह जनाब ! बहुत उम्दा! जान दाल दी हैं आपने इन चंद पंक्तियों में...
(www.drsuryabali.com)
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