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Friday, 4 June 2010

दिल ये नादाँ फिर दिवाना हो गया !

उस गली में आना-जाना हो गया
दिल का यारो आबो-दाना हो गया


आपसे सुनने-सुनाने की सुनी-
किस क़दर दुश्मन ज़माना हो गया


कोई तहज़ीबन भी मुस्काया अगर
दिल ये नादाँ-फिर दिवाना हो गया


ये इबादत - उसके नक़्शे-पा* दिखे
फ़र्ज़ अपना सर झुकाना हो गया


सिर्फ़ दो दिन आपसे मिलते हुए
जाने कब रिश्ता पुराना हो गया
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इबादत = उपासना, पूजा
नक़्शे-पा = पद-चिह्न
तहज़ीबन = औपचारिकता-वश, शिष्टाचार-वश

14 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

इन्तज़ार कराया, पर आ गये,
देखिये, सफर सुहाना हो गया

Jandunia said...

बहुत सुंदर

आचार्य उदय said...

आईये जानें ..... मन ही मंदिर है !

आचार्य जी

Satya Vyas said...

ओह मियाँ. त अज्जुब हो रहा है कि अब तक इस blog से अछूते कैसे रह गये ?
वैसे तह्ज़ीबन कि जगह मैने खुद ही से रस्मन जोड लिया है . कोइ ऐतराज हो तो जताइयेगा जरुर.......
सत्य

परमजीत सिहँ बाली said...

vaah!! bahut sundar gazal hai

M VERMA said...

सिर्फ़ दो दिन आपसे मिलते हुए
जाने कब रिश्ता पुराना हो गया
वाह, ऐसा ही होता है

vandana gupta said...

bahut sundar prastuti.

sonal said...

aisi hee badhiya shaayri padhate rahiye ...

Amrendra Nath Tripathi said...

यकीनन खूबसूरत गजल है !
अंतिम शेर तो बहुत लग रहा है ! सच्चाई !

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सुंदर.......

अनूप शुक्ल said...

सुन्दर! बहुत सुन्दर!

संजय भास्‍कर said...

यकीनन खूबसूरत गजल है !

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

शिष्टाचारी मुस्कान के दीवाने न होइए वरना हमारे पीछे ही घूमते रह जायेंगे ;-)

Himanshu Mohan said...

@ प्रवीण पाण्डेय
प्रवीण जी,
आपकी अनुमति हो तो आपकी टिप्पणी -
इन्तज़ार कराया, पर आ गये,
देखिये, सफर सुहाना हो गया

को अपने शे'र में बदल कर, ग़ज़ल में शामिल कर लूँ!
मैं कहूंगा -
"देर से आए, मगर आ तो गए-
किस क़दर मौसम सुहाना हो गया"

पहला मिसरा यूँ भी कहा जा सकता है-
"देर से आए, मगर आए तो आप"

दूसरे मिसरे के लिए कई विकल्प हैं -
"आते ही मौसम सुहाना हो गया"
"और फिर मौसम सुहाना हो गया"
"हर घडी-हर पल सुहाना हो गया"