उस गली में आना-जाना हो गया
दिल का यारो आबो-दाना हो गया
आपसे सुनने-सुनाने की सुनी-
किस क़दर दुश्मन ज़माना हो गया
कोई तहज़ीबन भी मुस्काया अगर
दिल ये नादाँ-फिर दिवाना हो गया
ये इबादत - उसके नक़्शे-पा* दिखे
फ़र्ज़ अपना सर झुकाना हो गया
सिर्फ़ दो दिन आपसे मिलते हुए
जाने कब रिश्ता पुराना हो गया
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इबादत = उपासना, पूजा
नक़्शे-पा = पद-चिह्न
तहज़ीबन = औपचारिकता-वश, शिष्टाचार-वश
14 comments:
इन्तज़ार कराया, पर आ गये,
देखिये, सफर सुहाना हो गया
बहुत सुंदर
आईये जानें ..... मन ही मंदिर है !
आचार्य जी
ओह मियाँ. त अज्जुब हो रहा है कि अब तक इस blog से अछूते कैसे रह गये ?
वैसे तह्ज़ीबन कि जगह मैने खुद ही से रस्मन जोड लिया है . कोइ ऐतराज हो तो जताइयेगा जरुर.......
सत्य
vaah!! bahut sundar gazal hai
सिर्फ़ दो दिन आपसे मिलते हुए
जाने कब रिश्ता पुराना हो गया
वाह, ऐसा ही होता है
bahut sundar prastuti.
aisi hee badhiya shaayri padhate rahiye ...
यकीनन खूबसूरत गजल है !
अंतिम शेर तो बहुत लग रहा है ! सच्चाई !
बहुत सुंदर.......
सुन्दर! बहुत सुन्दर!
यकीनन खूबसूरत गजल है !
शिष्टाचारी मुस्कान के दीवाने न होइए वरना हमारे पीछे ही घूमते रह जायेंगे ;-)
@ प्रवीण पाण्डेय
प्रवीण जी,
आपकी अनुमति हो तो आपकी टिप्पणी -
इन्तज़ार कराया, पर आ गये,
देखिये, सफर सुहाना हो गया
को अपने शे'र में बदल कर, ग़ज़ल में शामिल कर लूँ!
मैं कहूंगा -
"देर से आए, मगर आ तो गए-
किस क़दर मौसम सुहाना हो गया"
पहला मिसरा यूँ भी कहा जा सकता है-
"देर से आए, मगर आए तो आप"
दूसरे मिसरे के लिए कई विकल्प हैं -
"आते ही मौसम सुहाना हो गया"
"और फिर मौसम सुहाना हो गया"
"हर घडी-हर पल सुहाना हो गया"
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