आज के हालात का मैं तब्सरा हूँ
ख़ुश-तबस्सुम-लब मगर अन्दर डरा हूँ
बस गए जो वो किसी शर्त छोड़ते ही नहीं
टूटा-फूटा सा पुराना मकान मेरा दिल!
इस राह पे चलना भी ख़ुद हासिले-सफ़र है
मंज़िल क़रीब है पर दुश्वार रहगुज़र है
आए हैं, मुँह फुलाए बैठे हैं
लगता है ख़ार खाए बैठे हैं
उधर लाल-आँखें, चढ़ी हैं भौंहें
हम इधर दिल बिछाए बैठे हैं
16 comments:
आपके दिल बिछाने से तो अच्छे अच्छे बिछ जायें।
क्या खूब कही...भाई वाह...
नीरज
bahut khob,wah wah....
Vah kya khoob likha hai..sir....chaa gaye....
Do not worry..She 'll come..
बाऊ जी, नमस्ते!
पहला अश'आर: व्हाट इज़ तब्सरा?
दूसरा: वाह! वाह! खुशनसीब हैं आप!!! पर खाली क्यूँ करवाना है? कहीं कोई नया किरायेदार तो नहीं........?!?!?!
तीसरा: खरामा-खरामा पहुँच ही जायेंगे!
चौथा: वक़्त-वक़्त की बात है! ठंडा पानी ऑफर कीजिये!
आशीष
--
बैचलर पोहा!!!
आए हैं, मुँह फुलाए बैठे हैं
लगता है ख़ार खाए बैठे हैं
उधर लाल-आँखें, चढ़ी हैं भौंहें
हम इधर दिल बिछाए बैठे हैं
बहुत खूब.........सुन्दर प्रस्तुति
चंद्रमोहन गुप्त
खूबसूरत अहसासों को सुन्दर शब्दों में पिराओया है, बहुत खूब
क्या कहूं? बहुत उम्दा लिखा है, मजा आ गया पढ़कर.
जारी रहें.
उधर लाल-आँखें, चढ़ी हैं भौंहें
हम इधर दिल बिछाए बैठे हैं
बहुत खूब :)
Bahot Khub... :)
Go thr my blog also...
http://www.niceshayari-poems.blogspot.com/
Bahot Khub... :)
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इस राह पे चलना भी ख़ुद हासिले-सफ़र है
मंज़िल क़रीब है पर दुश्वार रहगुज़र है
बहुत सुन्दर पंक्तियां
bahut badhiyaa shayari umdaah waah maza aa gaya
http://www.pushpendradwivedi.com/
Wow Very nice like it…
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