साथी

Twit-Bit

Friday 20 August, 2010

जागते रहिए ज़माने को जगाते रहिए

=================================================================

जागते रहिए ज़माने को जगाते रहिए
ख़ैरियत-ख़ैरियत का शोर मचाते रहिए


वो जो सह लें, न कहें-उनको सहाते रहिए
वर्ना कह दें तो मियाँ ! चेहरा छुपाते रहिए


शम्मा यादों की मज़ारों पे जलाते रहिए
रोज़ इक बेबसी का जश्न मनाते रहिए


हुस्न गुस्ताख़ तमन्ना से दूर? नामुम्किन!
लाख बारूद को आतिश से बचाते रहिए


या तो खा जाइए, या रहिए निवाला बनते,
शाम के भोज का दस्तूर निभाते रहिए
=================================================================

और शे'र हैं, अभी फुर्सत नहीं है टाइप करने की. बाद में लाऊँगा...

4 comments:

वीरेंद्र सिंह said...

Bahut hi umda shaayri...sir ji.....

देवमणि पांडेय Devmani Pandey said...

सभी ग़ज़लें अच्छी लगीं। बहुत ताज़गी है आपके अशआर में। अंदाजे-बयां भी ख़ूब है।
देवमणि पाण्डेय, मुम्बई http://devmanipandey.blogspot.com/

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

शम्मा यादों की मज़ारों पे जलाते रहिए
रोज़ इक बेबसी का जश्न मनाते रहिए
वाह....हर शेर बेहतरीन...मुबारकबाद.
रक्षाबंधन पर्व की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं.

दिगम्बर नासवा said...

शम्मा यादों की मज़ारों पे जलाते रहिए
रोज़ इक बेबसी का जश्न मनाते रहिए ..

वाह ग़ज़ब के शेर हैं सब .... ये बेबसी भी कमाल है ...