मजबूरी तो कभी नहीं रहा मगर दर्द की शिद्दत बढ़ जाने पर मजबूरी ही बन जाता है।
यह कलाम मेरे नहीं हैं, दूसरों के हैं। दिल के क़रीब लगे तो याद रह गए।
याद रह गए तो दोहराने पर भी राहत देते हैं। तो मैंने सोचा कि ये राहत क्यों न आप सबसे बाँटी जाए?
याद इक ज़ख़्म बन गई है वर्ना
भूल जाने का कुछ खयाल तो था (याद नहीं किसका है)
दुश्मनों से प्यार होता जाएगा
दोस्तों को आज़माते जाइए (याद नहीं किसका है)
ज़िन्दगी के उदास लम्हों में
बेवफ़ा दोस्त याद आते हैं (याद नहीं किसका है)
हमें कुछ काम अपने दोस्तों से आ पड़ा यानी
हमारे दोस्तों के बेवफ़ा होने का वक़्त आया (शायद इस्माइल मेरठी)
नाहक है गिला हमसे बेजा है शिकायत भी
हम लौट के आ जाते आवाज़ तो दी होती (याद नहीं किसका है)
मेह्रबाँ होके बुला लो मुझे चाहे जिस वक़्त
मैं गया वक़्त नहीं हूँ के फिर आ भी न सकूँ (ग़ालिब)
ज़ह्र मिलता ही नहीं मुझको सितमगर वर्ना
क्या कसम है तेरे मिलने की-के खा भी न सकूँ (ग़ालिब)
कुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी!
यों कोई बेवफ़ा नहीं होता (बशीर"बद्र")
वो तेरी याद में हों या उसे भुलाने में (फ़िराक़)
तुम मेरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता (मोमिन)
कुछ इस अदा से आज वो पहलूनशीं रहे
जब तक हमारे पास रहे हम नहीं रहे
आपकी मख़्मूर आँखों की कसम
मेरी मैख़्वारी अभी तक राज़ है (याद नहीं किसका है)
उनसे ज़रूर मिलना, सलीके के लोग हैं
सर भी कलम करेंगे बड़े एहतराम से (बशीर"बद्र")
अगर दिखाइए चाबुक सलाम करते हैं
ये शेर वो हैं जो सर्कस में काम करते हैं (राहत इन्दौरी)
ज़िन्दगी में जो हुआ अच्छा हुआ
जाने दे, मत पूछ कैसे क्या हुआ (याद नहीं किसका है)
ये इमारत तो इबादतगाह थी
इस जगह इक मैक़दा था क्या हुआ (नामालूम)
वो बड़ा रहीमो करीम है मुझे ये सिफ़त भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो मेरी दुआ में असर न हो (बद्र)
वो आए बज़्म में इतना तो मीर ने देखा
फिर उसके बाद चराग़ों में रोशनी न रही (मीर)
हर ज़ीहयात का है सबब जो हयात का
निकले है दम उसी के लिए क़ायनात का (मीर)
अपने ही दिल ने न चाहा के पिएँ आबे-हयात
यूँ तो हम मीर उसी चश्मे प बेजान हुए ! (मीर)
देख तो दिल के जाँ से उठता है
ये धुआँ सा कहाँ से उठता है
ग़ोर किस दिलजले की है ये फ़लक
सुब्ह इक शोला याँ से उठता है
कौन फिर उसको बैठने दे है
जो तेरे आस्ताँ से उठता है
यूँ उठे आह उस गली से हम
जैसे कोई जहाँ से उठता है (मीर)
कहाँ तो तय था चरागाँ हरेक घर के लिए
कहाँ चराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए (दुष्यन्त)
होने लगी है जिस्म में ज़ुम्बिश तो देखिए
इस परकटे परिन्द की कोशिश तो देखिए (दुष्यन्त)
उनकी अपील है के उन्हें हम मदद करें
चाकू की पसलियों से गुज़ारिश तो देखिए (दुष्यन्त)
आप नज़रों से न कहिए न मैं आँखों से सुनूँ
जिस्म के हिस्से सभी अपना-अपना काम करें (नामालूम)
तुम मुख़ातिब भी हो, क़रीब भी हो
तुमको देखें के तुमसे बात करें (फ़िराक)
ये किसने शाख़े-गुल लाकर करीबे-आशियाँ रख दी
के मैंने शौक़े गुलबोसी में काँटों पर ज़ुबाँ रख दी (नामालूम)
चन्द कलियाँ निशात की चुनकर,
मुद्दतों मह्वे-यास रहता हूँ
तेरा मिलना खुशी की बात सही,
तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ ("साहिर" लुधियानवी)
दुश्मनी जम कर करो पर इतनी गुंज़ाइश रहे
फिर कभी जब दोस्त बन जाएँ तो शर्मिन्दा न हों (बद्र)
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दग़ी की शाम हो जाए (बद्र)
11 comments:
बहुत अच्छा संग्रह ।
"दिल के क़रीब लगे तो याद रह गए। याद रह गए तो दोहराने पर भी राहत देते हैं।"
अच्छी लगी आपकी बात और संग्रह भी
इन्द्र कुमार
बहुत बढ़िया है
http://www.mydunali.blogspot.com/
बहुत बढिया कलेक्शन. शुभकामनाएं
"दुश्मनों से प्यार होता जाएगा
दोस्तों को आज़माते जाइए"
हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
स्वागत,
अच्छा लिखा है, आशा है आगे भी आप के लेखन से ब्लॉग जगत लभान्वित होता रहेगा ।
चंद अशियार..
शायद बेकार..
क्या करूँ यार..
कह-सुन लेता हूँ खुद से ही..
शायद आ जाए करार..!!
ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है।
achchhe sheron ka sundar sangrah---hardik badhai.
bahut khoobsurat ...............
achha laga..........
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