गुलों पे तारी हुआ जबसे ख़ार का मौसम
कैसा गुमसुम सा है फ़स्ले बहार का मौसम
बेरुख़ी या अदा - कि हो के भी नहीं मौजूद
रू-ब-रू होके तेरे इंतज़ार का मौसम !
सुकून ले गया अम्नो - क़रार का मौसम
उनके वादों पे मेरे ऐतबार का मौसम
हार - नूपुर - चूड़ी - टिकुली - सिंगार का मौसम
जाने फिर आए - न - आए ये प्यार का मौसम
साल-दर-साल दुखे दिल, हो जैसे कल की बात
कैसा गुज़रा था मेरे पहले प्यार का मौसम
दग़ा-साज़िश-फ़रेब-झूठ-भितर्घात के बीच
याद आया बहुत माँ के दुलार का मौसम
हिमान्शु मोहन का गूगल प्रोफ़ाइल
इब्तिदा-आग़ाज़-शुरूआत-पहल
1 comment:
दग़ा-साज़िश-फ़रेब-झूठ-भितर्घात के बीच
याद आया बहुत माँ के दुलार का मौसम
-वाह! क्या बात है!
माँ का प्यार ख्यालों में भी सहारा दे देता है..बेहद खूबसूरत ख्याल !
अच्छा टेम्पलेट चुना है..ब्लॉग की थीम के अनुसार है.
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