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Saturday, 27 March 2010

मौसम : एक ग़ज़ल

गुलों  पे  तारी  हुआ जबसे  ख़ार का मौसम
कैसा गुमसुम सा है फ़स्ले बहार का मौसम

बेरुख़ी या अदा - कि हो के भी नहीं मौजूद
रू-ब-रू   होके  तेरे  इंतज़ार  का  मौसम !


सुकून ले गया अम्नो - क़रार का मौसम
उनके  वादों  पे  मेरे  ऐतबार  का  मौसम

हार - नूपुर - चूड़ी - टिकुली - सिंगार का मौसम
जाने  फिर  आए - न - आए ये प्यार का मौसम


साल-दर-साल दुखे दिल, हो जैसे कल की बात
कैसा  गुज़रा  था  मेरे  पहले  प्यार  का  मौसम

दग़ा-साज़िश-फ़रेब-झूठ-भितर्घात के बीच
याद आया बहुत माँ के दुलार का मौसम

हिमान्शु मोहन का गूगल प्रोफ़ाइल 
इब्तिदा-आग़ाज़-शुरूआत-पहल

1 comment:

Alpana Verma said...

दग़ा-साज़िश-फ़रेब-झूठ-भितर्घात के बीच
याद आया बहुत माँ के दुलार का मौसम

-वाह! क्या बात है!
माँ का प्यार ख्यालों में भी सहारा दे देता है..बेहद खूबसूरत ख्याल !
अच्छा टेम्पलेट चुना है..ब्लॉग की थीम के अनुसार है.