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Monday, 28 June 2010

बदलते मौसमों की ज़ात की बात

बदलते मौसमों की ज़ात की बात
धूप में ख़ुशनुमा बरसात की बात


दिन भी सूरज सा दहकता अंगार
रात भी सुलगे से हालात की बात


अपनी ख़ातिर थी वही काम की बात
टाल दी आपने जज़्बात की बात


इश्क़ है सब्र - हुस्न बेचैनी
कशिश दोनों की-करामात की बात


"कोई आ जायगा…" - "तो क्या!" पे ख़तम-
हर अधूरी सी मुलाक़ात की बात


चाँद बातूनी है मुँह खोल न दे -
बात चल निकले न फिर बात-की-बात


कड़े पहरों से गुमशुदा होकर -
मिली अख़बार में फिर रात की बात

8 comments:

माधव( Madhav) said...

nice

प्रवीण पाण्डेय said...

"कोई आ जायगा…" - "तो क्या!" पे ख़तम-
हर अधूरी सी मुलाक़ात की बात

निरुत्तर ।

नीरज गोस्वामी said...

हिमांशु जी...बहुत खूब...लिखते रहिये...
नीरज

vandana gupta said...

bahut badhiya

माधव( Madhav) said...

sundar rachna

ZEAL said...

अपनी ख़ातिर थी वही काम की बात
टाल दी आपने जज़्बात की बात...

Jo taal di jaye , wahi baat khaas hoti hai,

zazbaat ki baat , sare-aam nahi hoti hai.

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

वाह! वाह! वाह!
जय हो प्रभु!

वीरेंद्र सिंह said...

Himanshu ji....aapki shayri ko baar-baar padne ko man karta hai.
Aap ke shabdon ka bhandaar ka , zindagi ke tazurva ka, Hindi aur Urdu bhasha ki gahri jaankaari aur samajh ka main kaayal hun.

Bas isi tarah likhte rahiye ...Padhne vaalon men, main bhi hun.

I wish you all the best.Waiting for your next.