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Thursday, 17 June 2010

दहन (ग़ज़ल) : चित्र बोलोजीडॉट्नेट से साभार

एक पूर्वप्रकाशित रचना है 'दहन'। यह नेट पर मेरी प्रथम हिन्दी कविता थी - जो बोलोजीडॉट्नेट पर 2000 में प्रकाशित हुई। फिर दोबारा नहीं लिखा उस जालस्थल पर, क्योंकि उन्होंने मेरी कविता को संपादित कर दिया - प्रकाशन के पूर्व और उससे कविता मर गयी। यह मेरी स्वीकृति के बिना था और मेरी समझ में कविता या ग़ज़ल में सुधार करने का अधिकार मूल रचनाकार के अतिरिक्त किसी को नहीं होता।
यहीं पूर्णिमा वर्मन जी से परिचय हुआ और उस समय कुछ हिन्दी के लिए करने का जोश कुछ दिन चला। फिर समय ने करवट बदली तो हमने एक लम्बी चुप्पी साध ली। अब हम नौसिखिए हो गए,मज़ा आ रहा है।
दहन

मासूम मुहब्बत से कई लोग जल गए
हम जल के यूँ मिले के सभी हाथ मल गए


दिल में रहा न जोश तो दिल-दिल नहीं रहे
वो दिल ही क्या जो अक़्ल के हाथों सँभल गए


तक़्दीर की बुलन्दी भी लोगों को खल गयी
निकला ज़रूर दम, मगर अरमाँ निकल गए


उनको गिला - के वैसे भी हम जी तो न पाते
ये तो उन्हें जलाने को हम साथ जल गए


माचिस की तीलियों की तरह उम्र क्या ढली
सब जात-पाँत ख़ाक़ की सूरत में ढल गए



जो बन सके मशाल - मेरे साथ चल पड़े
जो डर गए, वो रुक-के - समझे हमको छल गए


जब तक जिए मुरझाए से घुट-घुट के साँस-साँस
जल कर लगा के हम खिले और बन कँवल गए


आशिक़ ये समझे जलने से दुनिया बदल गई
दुनिया ये समझी जीने के मानी बदल गए


दुनिया की इस सराय में सारे हैं मुसाफ़िर
कल आए थे-कुछ आज, तो कुछ लोग कल गए
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और आख़िर में एक शे'र तस्वीर की तारीफ़ में भी -

"तस्वीर ख़ुद ग़ज़ल है के नज़रों का इक फ़रेब
इतना हसीं के जलने को लाखों मचल गए!"

5 comments:

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) said...

वैसे तो पूरी गज़ल ही बेहतरीन है तब भी मेरे पसन्दीदा शेर है:

आशिक़ ये समझे जलने से दुनिया बदल गई
दुनिया ये समझी जीने के मानी बदल गए


दुनिया की इस सराय में सारे हैं मुसाफ़िर
कल आए थे-कुछ आज, तो कुछ लोग कल गए

और तस्वीर की तारीफ़ मे कहा गया शेर तो सवाशेर है साहेब... भई वाह!!

Udan Tashtari said...

मेरी समझ में कविता या ग़ज़ल में सुधार करने का अधिकार मूल रचनाकार के अतिरिक्त किसी को नहीं होता- बिल्कुल सही कहा..बाकी सलाह हमेशा आमंत्रित है.

तस्वीर ख़ुद ग़ज़ल है के नज़रों का इक फ़रेब
इतना हसीं के जलने को लाखों मचल गए!

क्या बात है! बहुत शानदार!!

प्रवीण पाण्डेय said...

बहुत ही ज़ोरदार ।
कृतियाँ में छेड़छाड़ से सृजनात्मकता आहत होती है ।
मज़ा तो नये बने रहने में ही है । स्वयं को ही आश्चर्य में डाल देने वाली नवीनता ।

हरकीरत ' हीर' said...

मासूम मुहब्बत से कई लोग जल गए
हम जल के यूँ मिले के सभी हाथ मल गए

आपकी खाशियत ये लगी
के ग़ज़ल के शे'र कुछ अलग सा कह गए.......!!

इश्क़ का फाड़ के ख़त गुस्से में
हुस्न अब फिर है मेहरबाँ सा कुछ

क्या बात है .......!!

मुझसे पूछी है मेरी राय तो अब
देख ले तू भी आइना सा कुछ

क्या अदा है ......!!

Anonymous said...

बेहद खूबसूरत और मुकम्मल गज़ल ... और इसके साथ साथ तस्वीर भी गज़ल जैसी ही लगी ... और इस शेर पर तो फ़िदा ...
तस्वीर ख़ुद ग़ज़ल है के नज़रों का इक फ़रेब
इतना हसीं के जलने को लाखों मचल गए!