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Tuesday 25 May, 2010

ज़माना हुआ

हमको रूठे-मने ज़माना हुआ
उनसे बिछड़े-मिले ज़माना हुआ


गर्द आईनों पे, शर्मिन्दा हम
सर झुके ही झुके ज़माना हुआ


अच्छे-अच्छों की नीयतें देखीं
अपनी बिगड़े हुए ज़माना हुआ


क़िस्से जारी हैं-रात बाक़ी है
ज़िक्र उसका* किए ज़माना हुआ


हमको अत्फ़ाल* दे रहे हैं सलाह
चुपके सुनते हमें ज़माना हुआ


दिल लगा ऐसा फ़ानी* दुनिया से
दिल को अपना कहे ज़माना हुआ


अब न यादें हैं न हमदर्द कोई
ख़्वाब देखे हमें ज़माना हुआ


हिम्मतें एक तरफ़, दूसरी तरफ़ दुनिया
बीच में हम खड़े - ज़माना हुआ


हम समझदार, ख़ून ठण्डा है
जंग हक़ की लड़े ज़माना हुआ

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संदर्भ:
1) 'उस' से इशारा 'उस' की तरफ़ है
2) अत्फ़ाल=बच्चे,नासमझ,छोटे
3) वाबस्ता=सम्बन्धित
4) फ़ानी=नश्वर, नाशवान

14 comments:

daanish said...

अब न यादें हैं न हमदर्द कोई
ख़्वाब देखे हमें ज़माना हुआ

आँखों से नींद का तल्ख़ रिश्ते को बयान करते हुए
खूब शेर निकाला है जनाब
और आजकल के बच्चों का हमें सुनाना
और हमारा सहज भाव से सुनना ...
शायद हमारी फितरत में शामिल हो चुका है

अच्छी रचना कही है .... बधाई

Shah Nawaz said...

हमको रूठे-मने ज़माना हुआ
उनसे बिछड़े-मिले ज़माना हुआ

बेहतरीन रचना, बहुत खूब!

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर गजल है।बधाई।

दिलीप said...

waah antim sher to lajawaab...

Udan Tashtari said...

दिल लगा ऐसा फ़ानी* दुनिया से
दिल को अपना कहे ज़माना हुआ


-वाकई, एक जमाना हुआ..बहुत खूब हिमान्शु भाई!!

Randhir Singh Suman said...

nice

प्रवीण पाण्डेय said...

तुमको बात अपनी भी बताते हैं,
जिन्दगी बेदर्द सहे ज़माना हुआ ।

Smart Indian said...

बहुत सुन्दर!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बेहतरीन ग़ज़ल..

श्रद्धा जैन said...

अब न यादें हैं न हमदर्द कोई
ख़्वाब देखे हमें ज़माना हुआ

bahut khoob kaha hai ......

दिल लगा ऐसा फ़ानी* दुनिया से
दिल को अपना कहे ज़माना हुआ



waah Himanshu ji

Anonymous said...

'हिम्मतें एक तरफ़, दूसरी तरफ़ दुनिया
बीच में हम खड़े - ज़माना हुआ'

सच्ची ऐसीच हूँ मैं.
सारे शे'र मस्त मस्त ,पर इंदु के दिल को तो ही छुएगा न जो उसके मिजाज-सा होगा.
इस शे'र को पढते ही मजा आ गया.
बने बनाए रास्तों पर चलना बड़ा आसान है हिमांशु जी,किन्तु जब कोई नया रास्ता बनाया जाता है,दुनिया एक ओर हो जाती है और आप अकेले एक ओर होते हैं .
इन रास्तों पर फूल मिले न मिले पत्थर तो मिलेंगे ही ये सोच कर व्यक्ति चल दे ...........और काफीले भी बन ही जाते हैं.
'ऐसे शे'र मेरे हमराह,हमसफ़र हैं बस...... और डरना?
वो तो सीखाईच नही
क्या करूँ ऐसीच हूँ मैं.
तभी तो यही शे'र ज्यादा भा गया मन को.यूँ....सब अच्छे हैं. सच्ची.

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

अरे ज़माना गया तेल लेने.......
जब आप मिलेंगे ही नहीं तो ज़माना तो होईबे करेगा न !!
बड़ा दिन हुए बज्ज फोड़े !!!
वह दिन नहीं भूलता जब हमने एक ही दिन में दो बज्ज फोड-फाड़ डाले थे.
हा हा हा

kumar zahid said...

अच्छे-अच्छों की नीयतें देखीं
अपनी बिगड़े हुए ज़माना हुआ
क़िस्से जारी हैं-रात बाक़ी है
ज़िक्र उसका* किए ज़माना हुआ
अब न यादें हैं न हमदर्द कोई
ख़्वाब देखे हमें ज़माना हुआ

ये अशआर बहुत वजनदार हैं।
बस जनाब संभाले रखिये, भारी चीजें एहतियात चाहती हैं।

Himanshu Mohan said...

@MUFLIS
@kumar zahid
@श्रद्धा जैन
@दिलीप
@Udan Tashtari
@Smart Indian
@sangeeta swarup
शुक्रिया हौसला अफ़्ज़ाई का,
ब्लॉग देखे!-लगे ज़माना हुआ

@परमजीत सिँह बाली
@Shah Nawaz
पधारने का आभार और प्रशंसा का शुक्रिया, बहुत-बहुत

@Suman
"सो वेरी नाइस ऑफ़ यू सुमन जी! बहुत-बहुत धन्यवाद"

@indu puri
@E-Guru Rajeev
जल्दी ही आते हैं फिर बज़फोड़वा-गीरी करने! जय हो!