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Sunday 30 May, 2010

साक़िया और पिला, और पिला

साक़िया और पिला, और पिला
सितम कम गुज़रे अभी और जिला

कोई शिक्वा, न शिकायत, न गिला
ऐसे देते हैं मुहब्बत का सिला !

इरादतन कुरेदता हो जो ज़ख़्म,
ऐसा दुनिया में पराया न मिला

हमने उसको बना लिया माली
जिसकी मर्ज़ी बिना पत्ता न हिला

वही रिमझिम है - वही इन्द्रधनुष
या ख़ुदा याद फिर उनकी न दिला

8 comments:

दिलीप said...

waah bahut khoob lajawaab...

सहसपुरिया said...

KYA KAHNA............
ZINDABAD

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत बढिया!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत बढ़िया ...अच्छी ग़ज़ल

डॉ महेश सिन्हा said...

सुंदर

प्रवीण पाण्डेय said...

और
जिला दे इस कदर
कि मरने की राह न मिले ।

Padm Singh said...

हमने उसको बना लिया माली
जिसकी मर्ज़ी बिना पत्ता न हिला
...सुंदर गज़ल बधाई

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

'सितम कम गुज़रे अभी और जिला'
मरने की दुआ मांगते तो बहुत देखे हैं ये पहला प्रेमी है जो जिलाने की मांग कर रहा है. !!!
वाह बहुत खूब.
महफ़िल जमाने वाली गज़ल है. ;-)