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Thursday 15 July, 2010

शरीफ़ लोग आजकल वाले

सारे क़िस्से फ़रेब-छल वाले
शरीफ़ लोग आजकल वाले


शहर में सारे ऐब जंगल के
और शर्मिन्दा हैं जंगलवाले


हैं तो नाराज़,मगर कहते नहीं
नाते-रिश्ते प्रपञ्च-छल वाले


ज़हर उगलें, हमें क़ुबूल नहीं
पी लिये जाम हलाहल वाले


वफ़ा-ख़ुलूस-जुनूँ-सच-ईमाँ
अपने भी तौर हैं पागलवाले


हम नहीं झोंपड़ी-महल वाले
ठिकाने ढूँढे हैं मक़्तल वाले


वही तेवर, वही तिरछी चितवन
घूरते नैन भी काजल वाले


एक 'छ्म' और दिवाना घायल-
जाने कब समझेंगे पायल वाले!


वायदे झूठे वही 'कल' वाले
सारे अन्दाज़ हैं ग़ज़ल वाले
---------------------------------------------
एक मतला, एक हुस्ने-मतला का चलन तो आम है; मगर यहाँ काफ़िए की तंगी न थी, रदीफ़ भी ख़फ़ीफ़ न थी सो कई शे'र हो गए मतले के रंग में। अब क्या करूँ?
जो मक़्ता की जगह कब्ज़ाए हुए है - उस शे'र से ग़ज़ल कहनी शुरू हुई थी।
आजकल व्यस्तता ज़्यादा है - नए कलाम नहीं हैं ये। ये सब गज़लें ड्राफ़्ट में थीं, मार्च-अप्रैल में कह ली गयी थीं, शाया अब हो रही हैं।

17 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

दिल की जमीं पर गुलाब उगाना है उनको,
मेरी खुद्दारी जोत डालेंगे हल वाले।

Sunil Kumar said...

वफ़ा-ख़ुलूस-जुनूँ-सच-ईमाँ
अपने भी तौर हैं पागलवाले
खुबसूरत शेर दिल की गहराई से लिखा गया बधाई

अनामिका की सदायें ...... said...

wah ji kya andaaz hai apni baat ko kahne ka. bahut khoob.

आप की रचना 16 जुलाई के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
http://charchamanch.blogspot.com
आभार
अनामिका

Udan Tashtari said...

एक 'छ्म' और दिवाना घायल-
जाने कब समझेंगे पायल वाले!

-हाय!! क्या बात कही है...वाह वाह!

दिगम्बर नासवा said...

वफ़ा-ख़ुलूस-जुनूँ-सच-ईमाँ
अपने भी तौर हैं पागलवाले

Sach hai .. aaj ke dour mein aise log paagal hi kahlaaye jaate hain ...
khoobsoorat gazal hai ...

ZEAL said...

एक 'छ्म' और दिवाना घायल-
जाने कब समझेंगे पायल वाले!..

payalein khamosh hain, ye deewane kab samjhenge?

Amrendra Nath Tripathi said...

एक दो शेर नहीं सारे शेर हैं चुम्मा
है परेशान चुमैया कि अब किसे चूमे !

.......... बस रस ही ले सकता हूँ , ज्यादा क्या कहूँ !

Himanshu Mohan said...

ज्ञानदत्त पाण्डेय जी - ईमेल पर:
शहर में सारे ऐब जंगल के
और शर्मिन्दा हैं जंगलवाले

यह पढ़ कर अज्ञेय का कहना याद आता है (शायद कुछ ऐसा है) - सांप तुमने डंसना कहां से सीखा, तुम शहर में तो रहते नहीं!
बहुत खूब!

सहसपुरिया said...

बहुत खूब...

Shah Nawaz said...

बेहतरीन, बहुत खूब!

एक 'छ्म' और दिवाना घायल-
जाने कब समझेंगे पायल वाले!

नीरज गोस्वामी said...

वफ़ा-ख़ुलूस-जुनूँ-सच-ईमाँ
अपने भी तौर हैं पागलवाले

एक 'छ्म' और दिवाना घायल-
जाने कब समझेंगे पायल वाले!

वाह वाह वा....आपका ये अंदाज़ सबसे जुदा और दिलकश है...इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दाद कबूल करें...

नीरज

The Straight path said...

वाह वाह!

राजकुमार सोनी said...

बहुत ही जबरदस्त अन्दाज में सारी बातें कह दी है आपने. बधाई.

Himanshu Mohan said...

@अनामिका की सदायें
आप के कहे अनुसार आपकी http://charchamanch.blogspot.com
पर गया था। आपका संक्षिप्त और सारगर्भित अंदाज़ अच्छा लगा - जैसे गीतों भरी कहानी होती थी - वैसे ही ब्लॉगपोस्टों भरी चर्चा! ख़ूब।

Himanshu Mohan said...

@प्रवीण पाण्डेय
हल चला दें तो भला हो जाए
ज़मीं से संग तो छन जाएँगे;
रूठ जाएँ तो क्या तरद्दुद जी
हम मनाएँगे, वो मन जाएँगे।

@Sunil Kumar
शुक्रिया जी शुक्रिया!

@Udan Tashtari
ख़ूब है आपका आना दिलकश,
वाह-वा! का यूँ उठाना दिलकश,
यार हों-महफ़िलें हों-प्याले हों-
लौट कर आए ज़माना दिलकश!

@दिगम्बर नासवा
बक़ौल चच्चा (ग़ालिब):
बक रहा हूँ जुनूँ में क्या-क्या कुछ
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई
शुक्रिया-ब्लॉग पर आने का भी और पसंद का भी।

@Divya
गीत-लय-सुर-ताल सब गूँगे हुए
नूपुरों के छन्द ख़ामोशी लिए!
आभार!

@अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
चूमना चाहिए फूलों को बचाकर काँटे
शौक़े-गुलबोसी में ज़ख़्मों की न ख़ैरात मिले!
सावधान बच्चा, "इक बिरहमन ने कहा है के ये साल अच्छा है"

@सहसपुरिया
@Shah Nawaz
@sajid
आपका आभार, ब्लॉग पर पधारने के लिए, और शुक्रिया कि आपने क़लाम पसंद किया।

@नीरज गोस्वामी
आपका आशीष यूँ मिलता रहे हमको अगर
देखिएगा नाम हम भी एक दिन कर जायँगे
धन्यवाद!

@राजकुमार सोनी
आप भूले से, भटकते हुए, आते हैं कभी-
और फिर कहते हैं - तैयारी में कमी निकली
लोग ख़ुश यूँ कि हमारी बनी है फिर जाँ पे,
और हम मस्त, कि क्या बात कही-क्या निकली!
आभार और शुक्रिया!

वीरेंद्र सिंह said...

Himanshu ji...

Phir se har ball par chakka.

(You hit every ball for a six again)

Every line is 'Dhaanshu' means very very impressive.

"शहर में सारे ऐब जंगल के
और शर्मिन्दा हैं जंगलवाले"

" Ab Kya likhun in lines ke baare men
Mombatti jalane se kya faayada chand ke ujiyaare men"

Ye meri lines hai....Shrimaan ji

Aapki upervalli lines ki taareef men.

Ek baat aur, aapke blog par aane ke liye mujhe via yahoo search aana pada. pahle seedhe apne blog se aa jaata tha . 2-3 din se via google aane ki koshish men tha, magar baat nahin bani. Bhala ho yahoo vaalon ka. ya ho sakta hai maine search hi sahi se n ki ho. jo bhi ho ..Aap apne blog ki setting ko check ker lijiye. Aapke comment par clik karne se ..Profile not found ka message pichhle 4 dinon se aa raha hai.

Unknown said...

एक 'छ्म' और दिवाना घायल-
जाने कब समझेंगे पायल वाले!
सच मे ये दिल को छू जाती है .....