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Thursday 8 July, 2010

रुबाई का मौसम : दिल से दिल को आते हैं, क्या अजीब रस्ते हैं

और आज बारी है रुबाई की
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इश्क़ ने जब कभी आँखों को रुलाया होगा
सारा इल्ज़ाम इसी दिल पे तो आया होगा
सुन के गाली भी इस भरम में मुस्कराते हैं
सिवा तुम्हारे इन्हें किसने बुलाया होगा

रात से पहले जैसे शाम का नाम आता है
मौत से पहले यूँ ही राम-राम आता है
लोग छुप-छुप के आने वाले को अब क्या पूछें
बात ये है के अब वो सरेआम आता है

सब ये कहते हैं हर इन्साँ में ख़ुदा होता है
किससे पूछूँ के ये इन्सान कहाँ होता है
कल तो दुश्मन को भी महबूब समझते थे मगर
अब मुहब्बत से अदावत का गुमाँ होता है

नींद अब आजकल फ़रार है क्यूँ
ज़िंदगी इतनी ख़ुशगवार है क्यूँ
ख़ुद पे भी इस क़दर यक़ीन नहीं
जाने फिर तुझपे ऐतबार है क्यूँ

जब से वो बाग़बाँ हुए यारो
सारे जंगल धुआँ हुए यारो
शौक़े-तामीरे-शह्र ये उनका
हम तो बेआशियाँ हुए यारो

शुरू-शुरू में तड़प बेशुमार होती है
कभी तक़रार कभी ऐतबार होता है
तीसरे दौर में जब दर्द से ऊब होती है
दर-हक़ीक़त वो प्यार होता है

नज़्म कहना मेरी आदत तो नहीं
ग़ज़ल कहने की ज़रूरत तो नहीं
वो भी कतराने लगे हैं हमसे
कहीं उनको भी मुहब्बत तो नहीं

यूँ तो आँख के बादल सौ तरह बरसते हैं
बूँद-बूँद को दिल के दश्त क्यूँ तरसते हैं
सायबान वीराँ है, कारोबारे-अश्काँ है
दिल से दिल को आते हैं क्या अजीब रस्ते हैं

हरेक शाम बड़ी ख़ास शाम होती है
सुबह की उम्र इसी दम तमाम होती है
ज़िन्दगी ज़िन्दगी के इंतज़ाम में गुज़री
मौत तो और बड़ा ताम-झाम होती है

9 comments:

वीरेंद्र सिंह said...

Himanshu ji ..Agar main kuch jyada hi tareef kar dun, to aapko lagaga ki main Galat hun. Haqikat to ye hai ki Aapki ye rachna padkar....

Bhai..Maza aa gaya...............

Shayad hi koi aisa ho jise ye pasand na aaye.Mujhe to abhi baar-2 padhna hai, tab jakar tassalli milegi.

Aapke liye ek sher hai----Ye mera nahi hai. Kisi pahunche hua bande ne kisi bahut pahunche hua bande ke liye likha hoga. Vahi sher main aapke liye yahan likh raha hun.


[Uske Qad ka hamen gumaan n tha....

Uske Qad ka hamen gumaan n tha....

Vo aasman tha, par sir jhunkaaye baitha tha......................]

Ummeed hai ye aapko pasand aayega.

Ye sher aapko kaisa lagaa .Zaroor batana. Haalanki ye mera nahin hai.
Phir bhi......ye maine aapke liya likha hai...isliye.

प्रवीण पाण्डेय said...

कहें क्या आपके शेरों में रहती है धमक इतनी,
नींद से जाग तो जाते, बहकना हो नहीं पाता ।

Amrendra Nath Tripathi said...

वाह गमागम रख दिए रुबाइयां ..
सब चौचक हैं .. सबमें कहन का अपना ढंग है ..
छठे ठिकाने पर मेरी पठन-लय डुगडुगाने लगी ..
मजा आ गया ! आभार !

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji said...

नज़्म कहना मेरी आदत तो नहीं
ग़ज़ल कहने की ज़रूरत तो नहीं
वो भी कतराने लगे हैं हमसे
कहीं उनको भी मुहब्बत तो नहीं !!
हमपे भी आप लिखने ही लगे,
शायद आप सोये से जगने लगे !!

ZEAL said...

हरेक शाम बड़ी ख़ास शाम होती है
सुबह की उम्र इसी दम तमाम होती है...

With every beginning, something ends.
Do we have the time to cry for past?...It's wise to listen to heart and out heart speaks different at different moments and circumstances.

Beautiful creation !
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दिगम्बर नासवा said...

इश्क़ ने जब कभी आँखों को रुलाया होगा
सारा इल्ज़ाम इसी दिल पे तो आया होगा
सुन के गाली भी इस भरम में मुस्कराते हैं
सिवा तुम्हारे इन्हें किसने बुलाया होगा

बस रस्मी तौर पर एक रुबाई उतार रहा हूँ ....
वैसे सब कमाल कर रही हैं ... एक से बढ़ कर एक ... आनंद आ गया ... लाजवाब ...

Himanshu Mohan said...

@Virendra Singh Chauhan
आपने तो लाजवाब कर रखा है वीरेन्द्र जी!
इतना अच्छी तरह तारीफ़ करना मुझे नहीं आता, मगर तारीफ़ से ख़ुश होना ज़रूर आता है। इंसानी कमज़ोरी है, जो फ़नकारों में थोड़ी ज़ेयादह होती है और बहुतायत से पाई जाती है।
जो शे'र आपने दर्ज किया है - वो अकेला भारी है तमाम सुख़न पर। हो सकता है वो शाइर बड़ा हो या न हो - मगर ये शे'र बहुत बड़ा है।
आपने मुझे मजबूर कर दिया है कि आगे से ख़्याल रखूँ इस बात का कि मेरे कलाम में आपको वो मज़ा मिलता रहे - जिसके क़ाबिल आपने मुझे समझा है।
भाई बहुत-बहुत शुक्रिया, क्या अंदाज़ है आपकी तारीफ़ का! सीखना है - धीरे-धीरे सीख लूँगा, कोशिश शुरू कर दूँ ज़रा आज ही से…
आते रहिए…

@प्रवीण पाण्डेय
बहकना बहुत ज़रूरी है दोस्त! वाकई ख़ुद को बहक जाने से बचाए रखने के लिए। अपनी बात के समर्थन में एक-दो नज़ीर पेश करूँ?
लीजिए-
अच्छा है दिल के पास रहे पासबाने अक़्ल
लेकिन कभी-कभी उसे तन्हा भी छोड़ दे
(दाग़)

या थोड़ा और ऊपर चलें?
वही एक सिज्दा है कारगर, जो हो फ़िक्रो-होश से मावरा
वो हज़ार सिज्दे फ़ज़ूल हैं, जो रहीने-लग्ज़िशे-पा नहीं !
(श0ब0)
आप इनका आनन्द लीजिए, फिर लौट कर मिलते हैं…

@अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
पठन-लय डुगडुगाए तो बुरा नहीं -
ज़िन्दगी में बनी रवानी रहे, प्यार तारी रहे फ़िज़ाओं पे;
ख़ुशनुमा राह दोस्ती की रहे, फूल भारी पड़ें ख़िजाओं पे;
ख़्वाहिशें लालच-ओ-हवस न बनें, भूख से सोच न शर्मिन्दा हो;
चलो देखें-कि इतने में ही ख़ुश, कोई इन्सान अभी ज़िन्दा हो!
आभार…

@E-Guru Rajeev
गुरू कहाँ हो आजकल? भेंट नहीं होती बज़ पर। हिन्दप्रभा पर अच्छा चल रहा है - मगर उस बारे में कैसे कमेण्ट भेजें - यह समझ नहीं आता। इस जन्मदिन पे लगता है बड़े, और बड़े समझदार हो गए हैं आप। शुभकामनाएँ - प्रगति-उन्नति के लिए…

@Divya
अभी ख़त्म कुछ, अभी फिर शुरू - ढली रात, सुब्ह क़रीब है;
ये बदलना-चलना ही क़ायनात का-मेरा-तेरा नसीब है

ये सही-ग़लत का भरम यहाँ, ये वफ़ा-जफ़ा, यही "तू" कि 'मैं';
ये ग़ुरूर-जाई अदावतों का निभाना कितना अजीब है?

ये सज़ा-इनाम-ये ख़िल्वतें, किसी ख़्वाब में नये ख़्वाब सी;
यूँही खोया-खोया सा सोचता हूँ ये ताजो-तख़्तो-सलीब है!

मैं ख़ुदा, कि बन्दा, कि ख़ुद दुआ, कि असर दुआओं का - क्या हूँ मैं?
मैं ये सोचूँ-समझूँ तो किस तरह? कि मरीज़ ख़ुद ही तबीब है!

कभी कुछ कहूँ-कभी चुप रहूँ, कभी दोस्ती-कभी दुश्मनी
वो अदा में रंगे-हबीब 'गर्चे मिज़ाज तर्जे-रक़ीब है!

Himanshu Mohan said...
This comment has been removed by the author.
Himanshu Mohan said...

@दिगम्बर नासवा
बहुत-बहुत आभार आपका पधारने के लिए,
धन्यवाद हौसला अफ़्ज़ाई के लिए।

@दिगम्बर नासवा
@Virendra Singh Chauhan
कविता और शायरी तो बर्बादियों का शग़ल है -
वो चाहे वक़्त की हो या इंसान की, या पूरी ज़िन्दगी की…
इन बर्बादियों को आबाद करने की सामर्थ्य प्रशंसा में ही होती है और एक अच्छा प्रशंसक सैकड़ों फ़नकारों के फ़न में नई जान डाल सकता है। लेखक या कवि तो ज़्यादातर अपनी ख़ुशी के लिए ही लिखते हैं, उसी ख़ुशी को महसूस करके, बाँट के - उसे कई गुना बड़ा करने का काम तो प्रशंसक ही करता है। इसलिए आपका और भी बहुत-बहुत आभार।
ये वाला फ़न सीखने की ठानी है मैंने अब, आपकी दुआ चाहिए…