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Twit-Bit

Monday 19 November, 2007

कुछ शेर फ़क़त उनको सुनाने के लिए…

जब ब्लॉग का नाम दर्ज करना चाहा तभी अन्दाज़ मिल गया कि शेर-ओ-शायरी के इतने क़द्रदाँ यहाँ मौजूद हैं कि ग़ालिब से लेकर बज़्म तक किसी भी ऐसे लफ़्ज़ को ख़ाली नहीं पाया जो शायरी से सीधा ताअल्लुक रखता हो। फिर सोचा कि सिर्फ़ शौक़ीन ही नहीं, सुख़नवर भी तो हैं हम!
तो फिर चचा से मीर तक़ी 'मीर' और दाग़, सौदा सभी को आदाब पेश करते हुए हमने मज़ाज़, फ़िराक़, जनाब फ़ैज़, बद्र साहब, ग़ुलज़ार, 'जादू' जावेद अख़्तर साहेब, मुनव्वर राना, राहत इन्दौरी (डाक्टर साहेब) वगैरह सभी को सलाम करते करते आख़िरश अक़बर और अतीक़ के इलाहाबाद में मक़ाम पाया 'सुख़नवर' का।
ना जाने क्यों आग़ाज़ में बावजूद तमाम पसन्दीदा अश'आर के, मरहूम को ख़ुदा जन्नत अता' करे, बार-बार अतीक़ साहब की याद आ रही है के-
कोई सूरज बनाता है, कोई जुगनू बनाता है
मगर वैसा कहाँ बनता है जैसा तू बनाता है!
आदाब!
मोहन

1 comment:

priyadarshini said...

स्वागत है.