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Wednesday, 31 March 2010

मेरी ख़ुश्बू

ज़र्रा-ज़र्रा मेरी ख़ुश्बू से रहेगा आबाद
मैं लख़्त-लख़्त हवाओं में बिखर जाऊँगा

ज़र्रा-ज़र्रा   मेरी   ख़ुश्बू   से    रहेगा   आबाद

मैं लख़्त-लख़्त हवाओं में बिखर जाऊँगा

10 comments:

Unknown said...

अति सुन्दर

सर्वत एम० said...

अगर यह शेर आपका है तो सुब्हानअल्लाह और अगर किसी और का है तो इतने उम्दा कलेक्शन के लिए आपको बधाई.

पूनम श्रीवास्तव said...

bahut hi umda sher bahut hi achha laga padhkar.
poonam

Anonymous said...

ज़र्रा-ज़र्रा मेरी ख़ुश्बू से रहेगा आबाद
मैं लख़्त-लख़्त हवाओं में बिखर जाऊँगा - बहुत खूब

Dimple said...

Hello ji,

Bahut sundar likha hai aapne!
And thanks a lot for your valuable comment on my blog!

Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com

gazalkbahane said...

bahut khoob



आज कुछ कर गुजरने वाला हूँ
बन के खुशबू बिखरने वाला हूँ

ज्योति सिंह said...

zabardast lagi umda

mridula pradhan said...

bahot achche.

Alpana Verma said...

वाह!क्या खूब शेर कहा है!

Amrendra Nath Tripathi said...

सुन्दर !
क्या गढ़ाव है !