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Friday, 16 July 2010

क्या जाने

एक छोटी सी रुबाई:
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अदा की चोट - अदा क्या जाने
हया क्या है, भला वो क्या जाने
"अदा-वफ़ा-हया इक संग चहिए"-
ख़ुद को समझे हो क्या ख़ुदा जाने!

8 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

अदा, वफ़ा, हया, एक संग चाहिये।
पते की बात। रूहानी भी, ज़ज्बाती भी।

Udan Tashtari said...

पैकेज डील सिर्फ खुदा के लिए..:)

बहुत बढ़िया!!

नीरज गोस्वामी said...

"अदा-वफ़ा-हया इक संग चहिए"

सच्ची बात...
नीरज

ZEAL said...

@-अदा, वफ़ा, हया, एक संग चाहिये..

All in one?

Tough but not impossible !

"Beauty lies in the eyes of beholder"

Hope the above proverb suffices.

A man with love in heart and faith in mind, gets all in one...

Otherwise there is no end of search.

Anonymous said...

मगर हिन्दुस्तान के क़ानून के अनुसार आप एक ही रख सकते हैं.तीनों में से एक चुने .
हा हा हा
हवाओ में चुनते हो इस तरह ये महल किस लिए
जो हकीकत ना बने देखते वो ख्वाब किस लिए
चाहा भी तो अदा-वफा-हया एक शख्स में
दिल को देते हो झूठे ये दिलासे किस लिए.

वीरेंद्र सिंह said...

Baat sahi hai Aapki....Aisa hi hota hai.Husn ki baat hi kuchh aur.


Very impressive ..................

Thanks........Thanks..........Thanks.

E-Guru _Rajeev_Nandan_Dwivedi said...

कुछ बचा हो तो हम भी हैं. लम्बर लगवा ही दो भाई. :-P

indore said...

एक छोटी सी रुबाई:
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अदा की चोट - अदा क्या जाने
हया क्या है, भला वो क्या जाने
"अदा-वफ़ा-हया इक संग चहिए"-
ख़ुद को समझे हो क्या ख़ुदा जाने!